18 महापुराण में से एक शिव महापुराण में भी जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें शामिल हैं। इस ग्रंथ के एक प्रसंग में भगवान शिव ने मन, वचन और कर्म से इंसान द्वारा किए जाने वाले पापों के बारे में बताया है। जिनमें 5 तरह के पाप बताए गए हैं। जो कि कई लोगों द्वारा जाने-अनजाने में हो जाते हैं। उन पापों से बचने के लिए इस ग्रंथ में उपाय भी बताए गए हैं।
मन, वचन और कर्म से होने वाले 5 तरह के पाप
मानसिक
मन में गलत विचार का आना मानिसक पाप की श्रेणी में आता है। कई बार लोग मन ही मन में ऐसे गलत काम कर जाते हैं। मन को नियंत्रित करने की क्रिया का नाम है योग यानी ध्यान। इसलिए हर दिन ध्यान की क्रिया से जरूर गुजरना चाहिए।
वाचिक
कई बार बोलते समय यह ध्यान नहीं रहता है कि सुनने वाले पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा। किसी को दुख पहुंचाने वाली बात कहना भी वाचिक पाप कहलाता है जब किसी से बातचीत करें तो ध्यान रखें कि हमारे शब्द सामने वालों को दुख नहीं पहुंचाए।
शारीरिक
प्रकृति ईश्वरीय स्वरूप है। लोग वृक्ष को काट देते हैं, जानवरों की हत्या कर देते हैं। ये सब शारीरिक पाप कहलाते हैं। इसके अलावा अनजाने में भी कई गलतियां हो जाती हैं। हम ईश्वर की बनाई कृति का सम्मान करेंगे तो प्रकृति भी हमें बहुत कुछ देगी।
निंदा
मनुष्य को दूसरों की निंदा करने की आदत होती है। लोग तो यह भी नहीं देखते कि जिसकी बुराई कर रहे हैं वह तपस्वी, गुरुजन, वरिष्ठ व्यक्ति है। तपस्वी और गुरुजन में भगवान का वास होता है। इसलिए उन्हें हमेशा सम्मान देना चाहिए।
गलत संपर्क
मदिरापान, चोरी, हत्या और व्याभिचार पाप है ही, लेकिन इन लोगों से संपर्क रखना भी पाप की श्रेणी में ही आता है। ऋषियों ने पाप से बचने के लिए सत्संग की व्यवस्था की है। जब भी अवसर मिले तो किसी अच्छे व्यक्ति के पास जाकर बैठना चाहिए।